Sunday, 9 August 2020

Naate paak

 हर डूबती नैया का तूफां में किनार है।

   आक़ा का वसीला ही मेहशर में सहारा है।


ये शान गुलामाने सुल्ताने मदीना की।

   डूबा था सफीना जो मोजों ने उभारा है।


रेहमत की घटाएं तो दिन रात बरसतीं हैं।

तैबा का हर इक मंज़र जन्नत का नज़ारा है।


हम इश्के मोहम्मद मैं हम दीने मोहमद पर।

   हर ज़ुल्म सहेंगे हम  हर ज़ुल्म गवारा है।


कलियों के चटकने से तारों की ज़िया तक सब

   सदक़ा है जमाल उसका आक़ा जो हमारा है।


मोहम्मद शफ़ाअत अली जमाल 

खरगोन मध्य प्रदेश

Contact :- sftshafaat@gmail.com

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