निस्बत का मिल रहा है सिला हम मज़े में हैं।
मैख़ाना यार का है खुला हम मज़े में हैं
ऐसे सखी का हाथ है माथे पे अपने आज।
ग़म हमको क्या सताए भला हम मज़े में हैं।।
हमने तो पी रखी है निगाहों से यार की।
साक़ी हमें न और पिला हम मज़े में हैं।।
तेरे करम से आज है सब कुछ हमारे पास।
किस बात का हो हमको गिला हम मज़े में हैं।।
आई न मुश्किलें कभी राहों में हमारी ।
ऐसा सखी है हमको मिला हम मज़े मे है ।।
रंग डाला ऐसे रंग में "शारिक़" हुज़ूर ने।
जो रंगे पंजेतन है मिला हम मज़े में हैं।।
शायर:- शारीक़ अली शारीक़
खरगोन म.प्र.
contact:- shariqali555@gmail.com
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